वांछित मन्त्र चुनें

अ॒भ्य᳖र्षत सुष्टु॒तिं गव्य॑मा॒जिम॒स्मासु॑ भ॒द्रा द्रवि॑णानि धत्त। इ॒मं य॒ज्ञं न॑यत दे॒वता॑ नो घृ॒तस्य॒ धारा॒ मधु॑मत्पवन्ते ॥९८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि। अ॒र्ष॒त॒। सु॒ष्टु॒तिम्। सु॒स्तु॒तिमिति॑ सुऽस्तु॒तिम्। गव्य॑म्। आ॒जिम्। अ॒स्मासु॑। भ॒द्रा। द्रवि॑णानि। ध॒त्त॒। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। न॒य॒त॒। दे॒वता॑। नः॒। घृ॒तस्य॑। धाराः॑। मधु॑म॒दिति॒ मधु॑ऽमत्। प॒व॒न्ते॒ ॥९८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:98


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विवाहित स्त्री-पुरुषों को क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विवाहित स्त्रीपुरुषो ! तुम उत्तम वर्त्ताव से (सुष्टुतिम्) अच्छी प्रशंसा तथा (आजिम्) जिस से उत्तम कामों को जानते हैं, उस संग्राम और (गव्यम्) वाणी में होनेवाले बोध वा गौ में होनेवाले दूध, दही, घी आदि को (अभ्यर्षत) सब ओर से प्राप्त होओ (देवता) विद्वान् जन (अस्मासु) हम लोगों में (भद्रा) अति आनन्द करानेवाले (द्रविणानि) धनों को (धत्त) स्थापित करो (नः) हम लोगों को (इमम्) इस (यज्ञम्) प्राप्त होने योग्य गृहाश्रम-व्यवहार को (नयत) प्राप्त करावो, जो (घृतस्य) प्रकाशित विज्ञान से युक्त (धाराः) अच्छी शिक्षायुक्त वाणी विद्वानों को (मधुमत्) मधुर आलाप जैसे हो वैसे (पवन्ते) प्राप्त होती हैं, उन वाणियों को हम को प्राप्त कराओ ॥९८ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्रीपुरुषों को चाहिये कि परस्पर मित्र होकर संसार में विख्यात होवें, जैसे अपने लिये वैसे औरों के लिये भी अत्यन्त सुख करनेवाले धनों को उन्नतियुक्त करें, परम पुरुषार्थ से गृहाश्रम की शोभा करें और वेदविद्या का निरन्तर प्रचार करें ॥९८ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विवाहितैः स्त्रीपुरुषैः किं कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अभि) सर्वतः (अर्षत) प्राप्नुत (सुष्टुतिम्) शोभनां प्रशंसाम् (गव्यम्) गवि वाचि भवं बोधं धेनौ भवं दुग्धादिकं वा (आजिम्) अजन्ति जानन्ति सुकर्माणि येन तं संग्रामम्। इणजादिभ्यः [उणा०४.१३२] इतीण् प्रत्ययः। (अस्मासु) (भद्रा) कल्याणकराणि (द्रविणानि) (धत्त) (इमम्) (यज्ञम्) संगन्तव्यं गृहाश्रमव्यवहारम् (नयत) प्रापयत (देवता) विद्वांसः। अत्र सुपां सुलुग्० [अष्टा०७.१.३९] इति जसो लुक्। (नः) अस्मान् (घृतस्य) प्रदीप्तस्य विज्ञानस्य सम्बन्धिन्यः (धाराः) सुशिक्षिता वाचः (मधुमत्) बहु मधु विद्यते यस्मिंस्तद् यथा स्यात् तथा (पवन्ते) प्राप्नुवन्ति ॥९८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रीपुरुषाः। यूयमुत्तमाचारेण सुष्टुतिमाजिं गव्यं चाभ्यर्षत, देवताऽस्मासु भद्रा द्रविणानि धत्त, न इमं यज्ञं नयत, या घृतस्य धारा विदुषो मधुमत्पवन्ते, ता अस्मान्नयत ॥९८ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्रीपुरुषैः सखिभिर्भूत्वा जगति प्रख्यातैर्भवितव्यम्। यथा स्वेभ्यस्तथान्येभ्योऽपि कल्याणकारकाणि द्रव्याण्युन्नेयानि। परमपुरुषार्थेन गृहाश्रमस्य शोभा कर्त्तव्या। वेदविद्या सततं प्रचारणीया च ॥९८ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या जगात स्त्री-पुरुषांनी परस्पर मित्र बनून जगावे. जसे आपल्या सुखासाठी धन प्राप्त केले जाते तसे इतरांसाठीही करावे. पुरुषार्थाने गृहस्थाश्रमाची शोभा वाढवावी व वेदविद्येचा सदैव प्रचार करावा.